पेड़-पौधे, फूल-फल, पहाड़, नदी, तालाब, खेत-खलिहान और बादल, आकाश, मौसम जब तक धरती से जुडे़ रहेंगे धरती बची रहेगी! धरती ही क्यों? पूरे ब्रह्माण्ड का अस्तित्व ही तब तक है जब तक द्वन्द्व है! जो कहते हैं: द्वन्द्व नहीं उनके भीतर शान्त है वह सबसे बड़ा झूठ है यह क्योंकि द्वन्द्व के बिना संभव नहीं है ‘प्रगति’ शान्ति संभव नहीं इस धरती पर ब्रह्माण्ड में भी, हर क्षण टूट रहा है कुछ-न-कुछ हर क्षण बन रहा है कुछ-न-कुछ इसी को नया-पुराना कहते हैं सब समय से टकराने वाले द्वन्द्व के करीब पहुँचे हम, जहाँ द्वन्द्व नहीं मृत्यु कहते हैं उसे सब!!! 02-09-2016
फ्रांस में रोशनी पृथ्वी चक्कर काटती हुई अपने अंधेरे कोनों में रोशनी बिखेर देने को हर रोज सूरज से रू-ब-रू होती है यह सतत चलता रहता है जब तक पृथ्वी चलती रहेगी अंधेरा टिका न रह सकेगा इसलिए अंधेरे से लड़ने वालो तुम पृथ्वी बनो और चलते रहो वह अंधेरा फैलाने का आदि है और तुम उजाले के संगी लगातार लड़ते हो अंधेरे से और जब मैंने पिछली सुबह सुनी थी फ्रांस में रोशनी की खबर मेरा मन फ्रांस होने को करता है क्योंकि अभी फ्रांस होना अपने हक के खातिर लड़ना है ---12/06/2016 जीवन हँस उठेगा मैं कवि नहीं न कोई गायक हूँ न नायक हूँ और ना ही खलनायक हूँ यह मेरा समय है! इसे अर्थ देने वाला अपने साहस से मैं अर्थदायक हूँ! न मैं समय के साथ हूँ न समय के विरुद्ध जो हूँ, वही हूँ समय को करीब से देखता हूँ ध्वनियों के कोलाहल में सम-विषम ध्वनियों को अलगाता हूँ बस उसके नजदीक जाता हूँ उनके रेशों को जो उलझे हैं सुलझाता हूँ फिर लौट आता हूँ और पाता हूँ कि ‘क’ जो केवल ध्वनि था उसके कईं मायने हैं कितना लचीलापन है इसके अर्थ में जिससे टकराता